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इन्तेज़ार

इन्तेज़ार का मफ़हूम

इन्तेज़ार उस हालत को कहते हैं, जिसमें इंसान अपनी मौजूदः हालत से परेशान हो कर एक रौशन मुस्तक़िबल (भविषय) की तलाश में हो। जैसे जब मरीज़ अपनी बीमारी से परेशान हो चुका होता है तो सेहत व सलामती के लिए रात दिन कोशिश करता है। या जैसे एक ताजिर(व्यापारी) जो समान न बिकने की वजह से परेशान होता है तो हमेशा इस फ़िक्र में रहता है कि किस तरह ुसका समान बिके और किस तरह ुसकी तिजारत चमके। वह हमेशा इसी बारे में कोशिश करता रहता है।

इन्तेज़ार के दो पहलु हैं और दोनों पर ही ग़ौर करना ज़रूरी है।

मनफ़ी (नकारात्मक) इंसान का ्पनी मौजूदः हालत से परेशान होना। मसबत (सकारात्मक) रौशन मुस्तक़बिल के लिए कोशिश करना।    

जब तक किसी िंसान की ज़ात में यह दोनों पहलु न पाये जाते हों उसे मुन्तज़िर नही कहा जा सकता है। क्योंकि जो इंसान मौजूदः हालत से राज़ी होगा उसे मुस्तक़बिल की कोई फ़िक्र नही हो सकती। अगर कोई अपनी मौजूदः हालत से राज़ी न हो और ुसे मुस्तक़बिल की भी कोी फ़िक्र न हो तो ऐसी हालत में ुसे किसी चीज़ का िन्तेज़ार ज़रूर रहता है।

जैसे जैसे यह दोनों पहलु किसी िंसान की ज़ात में जड़ पकड़ते जायेंगे वैसे वैसे ुसकी ज़िन्दगी में फ़र्क़ पड़ता जायेगा। क्योंकि जो बात दिल की गहराईयों में ुतर जाती है, इंसान के बदन के हिस्से उसको अपने अमल से ज़रूर ज़ाहिर करते हैं।

इन्तेज़ार के दोनों पहलु ही इंसान की ज़िन्दगी के लिए फ़ायदेमन्द हैं। क्योंकि जब इंसान अपनी मौजूदः हालत से दुःख़ी होगा तभी वह अपनी परेशानियों को दूर करने की तरफ़ तवज्जोह देगा।