इब्ने ख़लदून ने अहले सुन्नत के
उन तमाम उलमा के मक़ाबेले जिन्होंने क़ियामे इमाम महदी की हदीस को क़बूल किया है और
उसे मुतवातिर माना है इस तरह कहा है। " मुसलमानों के
दरमियान शुरू से ही यह बात मशहूर रही है और है कि आख़िरी ज़माने में पैग़म्बर (स.)
की नस्ल से एक आदमी ज़ाहिर होगा जो दीन को फैलाएगा और अद्ल को क़ायम करेगा। मुसलमान
उनकी पैरवी करेंगे और वह तमाम इस्लामी मुल्कों पर छा जायेंगे और उनका नाम महदी
होगा। दज्जाल का ख़रूज और क़ियामत से पहले की दूसरी घटनायें उनके ज़ाहिर होने के
बाद ही घटित होंगी। ईसा आसमान से नाज़िल होंगे और दज्जाल को क़त्लकरेंगे या उसे
क़त्ल करने में उनकी मदद करेंगे और ईसा उनके पीछे नमाज़ पढ़ेंगे ......कुछ हदीस के
इमामों जैसे तिरमिज़ी, अबू दाऊद, इब्ने माजा, बज़ाज़, हाकिम नेशापुरी तिबरानी व अबु
अली व ......ने इमाम महदी से मरबूत हदीसों को अपनी किताबों में पैग़म्बरे इस्लाम
(स.) के कुछ असहाब जैसे हज़रत अली, इब्ने अब्बास, अब्दुल्लाह इब्ने उमर, तलहा,
अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद, अबू हुरैरः, अनस, अबू सईद ख़दरी, उम्मे हबीबा, उम्मे सलमा,
सोबान, क़र्रा बिन अयास, अली हिलाली, अब्दुल्लाह बिन हारिस आदजि से नक़्ल किया है। "
यह लिखने के बाद इब्ने ख़लदून
कहता है कि " हो सकता है कि
इस हदीस का इंकार करने वाले इसकी सनद में मुनाक़िशा करें और मुहद्दिसों के
बीच यह बात मशहूर है कि (जिरह, तअदील पर मुक़द्दम है।) इस बिना पर अगर इस हदीस के
ऊपर बयान किये गये रावियोंमें कोई ज़ोफ़ का नक़्ता पाया जाये जैसे ग़फ़लत, भूल चूक,
ग़लत अक़ीदा......तो यह हदीस मोतेबर नही रहेगी। " इसके बाद वह इस तरह की कुछ हदीसों व
रावियों के बारे में लिखने के बाद कहता है कि यह हदीसें इत्मिनान के क़ाबिल
नही हैं। इसके बाद वह इमाम महदी से सम्बन्धित तमाम हदीसों के बारे में यह राये पेश
करता है कि यह वह हदीसें हैं जिनमें अहादीस के इमामों ने इमाम महदी व आख़िरी ज़माने
में उनके क़ियाम के बारे में नक़्ल किया है, लिहाज़ा आपने मुलाहेज़ा किया कि इनमें
से कुछ के अलावा सभी रिवायते मशकूक हैं।
इब्ने ख़लदून को जवाब
1- इल्मे हदीस में उसकी राय की कोई
अहमियत नही है क्योंकि जिस तरह उसने ख़ुद लिखा है कि इमाम महदी के बारे में कुछ
रिवायतें ही सही है, लिहाज़ा उन्हीं क़ाबिले इत्मीनान हदीसों के ज़रियें इमाम महदी
अलैहिस्सलाम का वजूद, ज़हूर और क़ियाम साबित हो जाता है और दूसरी हदीसें जिन्हें वह
मशकूक मानता है, वह इस बारे में सही हदीसों की मददगार हैं।
2- उसने जो चीज़ बयान की है वह वह
उन लोगों के लिए जवाब नही हो सकती जो इमाम महदी से सम्बन्धित हदीसों के मुतावातिर
और यक़ीनी होने का दावा करते हैं जैसे इब्ने अबिल हदीद मोतज़ली, जबकि वह तारीख़ व
हदीस में अहले सुन्नता का मशहूर आलिम है। वह इस बारे में लिखता है कि इस्लाम के सभी
फ़र्क़े व मज़ाहिब इस बात पर मुत्तहिद हैं कि उस वक़्त तक दुनिया का ख़ातमा नही
होगा जब तक इमाम महदी अलैहिस्सलाम ज़हूर न करलें। इब्ने अबिल हदीद जैसे
अहले सुन्नत के बहुतसे क़दीम उलमा ने और सैकड़ों बाद के आलिमों ने इस हदीस पर
तहक़ीक़ करके इसके मुतावातिर होने का दावा किया है। लिहाज़ यह मतलब इब्ने ख़लदून के
कहने पर मशकूक नही हो सकता।
अहमद अमीन
अहमद
अमीन मिस्री अपनी किताब ज़ुहल इस्लाम की तीसरी जिल्द में अपनी बे अक़ली और अहले बैत
अलैहिमु अस्सलाम की दुश्मनी में लिखता है कि शियों में महदवियत की
फ़िक्र यहूदियों व ईसाईयों से आई है और इसकी कोई हक़ीक़त नही है।
अहमद
अमीन, इब्ने तैमिये व उन्हीं जैसे दूसरे लोगों को यह जवाब दिया जा सकता है कि शिया
और उनके सच्चे अक़ीदों की जड़े बहुत गहरी हैं। उनकी शुरूआत पैग़म्बरे इस्लाम (स.)
के ज़माने में हुई और वह अल्लाह की वही की बुनियाद पर है। इमाम महदी के वजूद और
उनके क़ियाम का अक़ीदा क़ुरआने करीम की आयात व पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की रिवायतों
की बिना पर है।
इंसान
की अपने भविषय के उज्जवल होने की उम्मीद और दुनिया में अदालत फैलाने के लिए एक
मुसलेह (सुधारक) के आने का इन्तेज़ार एक फ़ितरी चीज़ है जिसका सभी आसमानी किताबों
जैसे तौरैत, ज़बूर, इंजील में ज़िक्र हुआ है। लिहाज़ा महदवियत का अक़ीदा
सिर्फ़ शियों से मख़सूस नही है बल्कि सभी मुसलमानों का अक़ीदा है।