हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की हुकूमत की मुद्दत और दुनिया का ख़ात्मा
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की हुकूमत का पाये
तख़्त (सैन्टर) कूफ़ा शहर होगा और मक्के में आपके नायब काम करेंगे। आपका दीवान
ख़ाना और हुक्म जारी करने की जगह मस्जिदे कूफ़ा होगी। मस्जिदे सहला को बैतुलमाल
क़रार दिया जायेगा और ख़िलाफ़त कदा नजफ़े अशरफ़ होगा।
(हक्कुल यक़ीन)
आपकी हुकूमत के दौरान मुकम्मल अमनो अमान होगा।
बकरी और भेड़िये, गाय और शेर, इंसान व साँप, ज़म्बील व चूह सब एक दूसरे से बेख़ौफ़
होंगे। गुनाह का इरतेकाब बिल्कुल बंद होगा और तमाम लोग पाक बाज़ हो जायेंगे। जहल और
कंजूसी ख़त्म हो जायेंगे। कमज़ोरों की दाद रसी होगी और ज़ुल्म दुनिया से मिट
जायेगा। इस्लाम के ज़िस्म में फिर से जान पड़ जायेगी। दुनिया के तमाम मज़हब ख़त्म
हो जायेंगे, न ईसाई रहेंगे न यहूदी और न ही कोई और मसलक, सिर्फ़ और सिर्फ़ इस्लाम
होगा। आप तलवार के ज़रिये दावत देंगे जो आपके ख़िलाफ़ होगा क़त्ल कर दिया जायेगा।
जज़िया मौक़ूफ़ होगा। अल्लाह की तरफ़ से शहर अका के हरे भरे मैदान में मेहमानी
होगी, सारी दुनिया खुशी से झूम उठेगी। दुनिया अद्ल व इंसाफ़ से भर जायेगी। दुनिया
के तमाम ज़ालिमों व मज़लूमों को जमा किया जायेगा। इमाम अलैहिस्सलाम मज़लूम की दाद
रसी करेंगे और ज़ालिम को सज़ा देंगे। हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स.) इन तमाम कामों की
निगरानी फ़रमायेंगे। इसी दौरान हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम अपनी 33 साल की ज़मीनी
ज़िंदगी में, सात साल की ज़िंदगी का और इज़ाफ़ा करके चालीस साल की ज़मीनी ज़िंदगी
में इस दुनिया से रुख़सत हो जायेंगे। आपको पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के रोज़े में
दफ़्न किया जायेगा।
इसके बाद हज़रत महदी अलैहिस्सलाम की हुकूमत का
ख़ात्मा हो जायेगा और हज़रत अली अलैहिस्सलाम दुनिया पर हुकूमत करेंगे। जिसकी तरफ़
क़ुराने करीम में दाब्बतुल अर्ज़ से इशारा किया गया है। यह सवाल कि हज़रत इमाम महदी
अलैहिस्सलाम कितने साल तक हुकूमत करेंगे
? इसमे
सख़्त इख़्तेलाफ़ है। इरशादे मुफ़ीद के पेज न. 533 पर सात साल और पेज न.537 पर 19
साल दर्ज है। आलाम उल वरा के पेज न. 365 पर 19 साल और मिशकात के पेज न. 462 पर 7,
8, और 9 साल, इसी तरह नूर उल अबसार के पेज न. पेज न. 154 पर 7,8, 9, 10 साल और
ग़ायत उल मक़सूद जिल्द न. 2 के पेज न.162 पर 7,8, 9 साल और यनाबि उल मवद्दा के के
पेज न. 433 पर 20 साल लिखा है। मैंने अहादीस व उलमा के अक़वाल से इसतम्बात
करके 20 साल को तरजीह दी है। हो सकता है कि एक साल दस साल के बराबर हो।
आपकी वफ़ात के बाद हज़रत इमाम हुसैन
अलैहिस्सलाम आपको ग़ुस्ल व कफ़न देंगे और नमाज़ पढ़ा कर दफ़्न करेंगे। हज़रत इमाम
महदी अलैहिस्सलाम के ज़हूर के दौरान क़ियामत से पहले ज़िन्दा होने को रजअत कहा जाता
है। यह रजअत इमामिया मज़हब के ज़रूरयात में से एक है।
(मजमा उल बहरैन पेज न. 422)
इसका मतलब यह है कि ज़हूर के बाद अल्लाह के
हुक्म से शदीद तरीन काफ़िर व कामिल तरीन मोमिन और पैग़म्बरे इस्लाम व आइम्मा – ए- ताहेरीन व अम्बिया-ए- सलफ़ दुनिया में पलट
कर आयेंगे।
(तकलीफ़ उल मुकल्लेफ़ीन फ़ी उसूले दीन पेज न. 25)
इस दौरान ज़ालिमों को
सज़ा और मज़लूमों को इंतेक़ाम का मौक़ा दिया जायेगा। इस्लाम को इतना बढ़ावा मिलेगा
कि लियुज़हिरा अला दीने कुल्ले दुनिया में सिर्फ़ एक दीन होगा और वह इस्लाम होगा।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का मुकम्मल बदला लिया
जायेगा और दुशमने आले मुहम्मद को क़ियामत में अज़ाबे अकबर से पहले, रजअत के दौरान
अज़ाबे अदना का मज़ा चखाया जायेगा।
(हक़्क़ुल यक़ीन पेज न. 147)
शैतान पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के हाथ से नहरे
फ़रात पर एक अज़ीम जंग के बाद क़त्ल होगा। आइम्मा – ए- ताहेरीन के हुकूमत
के ज़माने में तमाम अच्छे बुरे ज़िन्दा किये जायेंगे। हज़रत महदी अलैहिस्सलाम के
दौरे हुकूमत में जो लोग ज़िन्दा किये जायेंगे उनकी तदाद 4000 होगी। शोहदा को भी
रजअत में ज़ाहेरी ज़िंदगी दी जायेगी।
(ग़ायत उल मक़सूद पेज न. 173)
इसी रजअत के दौरान आइम्मा -ए- ताहेरीन अलैहिमु
अस्सलाम को आलम की हुकूमते अम्मा दी जायेगी। ज़मीन का कोई हिस्सा ऐसा न होगा जहाँ
पर आइम्मा की हुकूमत न हो। क्योंकि क़ुरआने मजीद में इरशाद हुआ है कि इन्ना
अल-अर्ज़ा यरिसुहा इबादि अस्सालिहून व नुरीदु अन नमुन्ना अला अल्लज़ीना उस्तुज़िफ़ू
फ़ी अल-अर्ज़ि व नजअला हुम आइम्मतन व नजअला हुम अल-वा वारीसीना।
(हक़्क़ुल यक़ीन पेज न. 146)
अब यह सवाल कि काएनात की हुकूमत आले मुहम्मद के
पास कब तक रहेगी ?
इसके मुतल्लिक़ एक रिवायत में मिलता है कि आप
8000 साल तक हुकूमत करेंगे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की ज़ेरे
निगरानी हुकूमत करेंगे और दिगर आइम्मा आपके वज़ीरों की हैसियत से पूरी दुनिया में
इन्तेज़ाम फ़रमायेंगे।
एक रिवायत में यह भी मिलता है कि तमाम इमाम
तरतीब से हुकूमत करेंगे।
(हक़्क़ुल यक़ीन व ग़ायत उल मक़सूद)
हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ज़हूर और निज़ामे आलम
पर हुकमरानी के मुताल्लिक़ क़ुराने करीम में यह आयत मौजूद है
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शिया व सुन्नी दोनों फ़िर्क़ों के उलमा का
इत्तेफ़ाक है कि यह आयत हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बारे में है। इसके लिए देखें
अल्लामा ज़हबी की मीज़ीन उल एतेदाल व अल्लामा बग़वी की मुआलिम उत तनज़ील व
अल्लामा मजलिसी की हक़्क़ुल यक़ीन व तफ़सीरे साफ़ी। इस बारे में तौरात में भी इशारा
मौजूद है।
(तज़किरा तुल मासूमीन पेज न. 246)
आप सफ़ा व मरवा के दरमियान से बरामद होंगे।
उनके हाथ में हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम की अंगूठी और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का
असा होगा। आप का काम यह होगा कि आप अल्लाह के मुख़ालिफ़ और उसकी आयतों पर यक़ीन न
रखने वलाले लोगों की तसदीक़ नही करेंगे। जब क़ियामत क़रीब होगी तो आप असा व
अंगुश्तरी से हर मोमिन व काफ़िर की पेशानी पर निशान लगायेंगे। मोमिन की पेशानी पर
हाज़ा मोमिन हक़्क़ा व काफ़िर की पेशानी पर हाज़ा काफ़िर तहरीर हो जायेगा।
(इरशाद उत तालेबीन पेज न.400 व क़ियामत नामा )
अल्लामा बग़वी किताब मिशकात उल मसाबीह के पेज
न. 464 पर लिखते हैं कि दाबतुल अर्ज़ दोपहर के वक़्त निकलेगा और जब इस दाबतुल अर्ज़
का अमल दर आमद शुरू हो जायेगा तो तौबा का दरवाज़ा बंद हो जायेगा उस वक़्त किसी का
ईमान लाना कारगर साबित न होगा।
हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि
एक मर्तबा हज़रत अली अलैहिस्सलाम मस्जिद में सो रहे थे कि इतने में हज़रत मूसा
अलैहिस्सलाम तशरीफ़ लाये और फ़रमाया क़ुम या दाब्बतु अल्लाह और एक दिन
फ़रमाया ऐ अली ! जब दुनिया का आक़िरी ज़माना आयेगा तो अल्लाह आपको
बरामद करेगा. ुस वक़्त आप अपने दुश्मनों की पेशानियों पर निशान लगाओगे।
(मजमा उल बहरैन पेज न. 127)
रिवायतों से मालूम होता है कि आले मुहम्मद की
हुक्मरानी उस वक़्त तक बाकी रहेगी जब तक क़ियामत में चालीस दिन बाक़ी रहेंगे।
इसका मतलब यह है कि वह चालीस दिन कब्रों से
मुर्दों को निकालने और क़ियामते कुबरा के लिए होंगे। हश्रो नश्र, हिसाबो किताब, सूर
फ़ूँकना और क़ियामते कुबरा के दिगर लवाज़िम इसी मुद्दत में अदा होंगे।
(आलाम ुल वरा पेज न. 265)
इसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम जन्नत का
परवाना देंगे जिसे लेकर लोग पुले सिरात से पार उतरेंगे।
फिर आप होज़े कौसर की निगरानी करेंगे, जो
दुशमने आले मुहम्मद वहाँ मोजूद होगा उसे पलटा देंगे।
(अरजेहुल मतालिब पेज न. 767)
फिर आप लवा-ए-हम्द यानी मोहम्मदी परचम लेकर
जन्नत की तरफ़ जायेंगे । सबसे आगे पैग़म्बरे इस्लाम (स.) होंगे, उनके पीछे तमाम
अम्बिया, शोहदा, सालेहीन और आले मुहम्मद के मानने वाले होंगे।
(अरजेहुल मतालिब पेज न. 774)
इसी लिए पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने अपनी ज़िंदगी
में हज़रत अबू बकर, उमर , उस्मान व दिगर असहाब को जमा करके फ़रमा दिया था कि अली
ज़मीन व आसमान दोनो जगह पर मेरे वज़ीर हैं। अगर तुम लोग अल्लाह को राज़ी करना चाहते
हो तो अली को राज़ी करो। क्योंकि अली की रिज़ा अल्लाह की रिज़ा और अली का ग़ज़ब
अल्लाह का ग़ज़ब है।
(मवद्दतुल क़ुरबा पेज न.55 से 62)
अली अलैहिस्सलाम की मुहब्बत के बारे में तुम
सबको जवाब देना पड़ेगा और तुम अली की मरज़ी के बग़ैर जन्नत में न जा सकोगे।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने अली अलैहिस्सलाम से
फ़रमाया कि आप और आपके शिया ख़ैरुल बरिय्यह हैं। यानी अल्लाह के नज़र में अच्छे लोग
हैं। वह क़ियामत में खुश होंगे और आपके दुश्मन नाकाम व नामुराद रहेंगे।